Domestic violence has a profound effect on the fetus:घरेलू हिंसा का भ्रूण पर पड़ता है ये गहरा असर (2022)
Domestic violence has a profound effect on the fetus :
घरेलू हिंसा का बच्चे के दिलो दिमाग पर बुरा असर पड़ता है, यह तो हम सब जानते है लेकिन एक नए अध्ययन में से यह बात सामने आई है क़ि घेलु हिंसा का असर बच्चे के जन्म से पहले यानि गर्भ में भी नुकसान पहुंचा सकती है Domestic violence has a profound effect on the fetus यह अध्य्यन हाल में चाइल्ड एब्यूज एंड नेग्लेक्ट में प्रकाशित एक शोध से पता (Domestic violence )
घरेलू हिंसा का भ्रूण पर असर
Domestic violenceएक नए अध्य्यन से पता चला है क़ि घरेलू हिंसा का प्रभाव गर्भावस्था और प्रसव पर पड़ता है। इस अध्ययन के अनुसार घरेलू हिंसा क़ि शिकार महिलाओ में जन्म संबंधी जटिलताएं जैसे कम वजन का बच्चा, अपरिपक्व जन्म जोखिम में बृद्धि देखने को मिलता है। घरेलू हिंसा भ्रूण के विकास को प्रभावित करता है। मातृ तनाव, कुपोषण, आघात और चिकित्सा देखवाल क़ि कमी
कारण कई मायनो में भ्रूण पर प्रभाव पड़ सकता है।
शोधकर्ताओं क़ि चेतावनी
घरेलू हिंसा का भ्रूण पर पड़ता है ये गहरा असर : Domestic violence has a profound effect on the fetus
शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है क़ि पति के द्वारा घरेलू हिंसा होने पर नकरात्मक प्रभाव और भी बुरे हो सकते है। यह एक तथ्य है क़ि घरेलू हिंसा माँ और बच्चे दोनों के जीवन को प्रभावित करता है, यही वजह है क़ि शोधरता निवारक उपायों सलाह देते है
घरेलू हिंसा से गर्भवती के तनाव प्रतिक्रिया पर प्रभाव पड़ता है और क्रिस्टोल नामक हार्मोन में बृद्धि होती है और इससे उनके गर्भ में पल रहे भ्रूण में भी क्रिस्टोल का स्तर बढ़ जाता है क्रिस्टोल एक न्यूरोटॉक्सिक है जिसकी अधिक मात्रा या स्तर भ्रूण के लिए दुष्प्रभावी और हानिकारक हो सकती है।
पति के कारण होने वाली घरेलू हिंसा
शोधकर्ताओ ने चेतावनी दी है क़ि अगर घरेलू हिंसा पति कारण होता है, तो इसका नकरात्मक प्रभाव बुरा हो सकता है। ऐसा नहीं है क़ि घरेलू हिंसा दोनों माँ और बच्चे के जीवन को प्रभावित करता है, एक तथ्य है और यही वजह है क़ि शोधकर्ता निवारक उपाए सलहा देते है। घरेलू हिंसा का भ्रूण पर पड़ता है
शोध का निष्कर्ष घरेलू हिंसा का भ्रूण पर पड़ता है ये गहरा असर
1.अध्ययन का निष्कर्ष यह निकला क़ि घरेलू तनाव घरेलू हिंसा का भ्रूण पर पड़ता है ये गहरा असर कई प्रसव जटिलताओं को दुगुना कर सकता है। यही कारण है ग़र्भवति को गर्भावस्था को पुरे चरण के दौरान उचित देखवाल दी जानी चाइये। इसके अलावा घरेलू हिंसा के कई अन्य प्रभाव को लेकर शोध्कर्ताओ ने पाया क़ि यह जन्म जटिलताओं भी खतरे के बीच हो सकते है।
2.जिन बच्चों क़ि माँ गर्भावस्था के दौरान हिंसा का शिकार होती है, उन बच्चों में जन्म के बाद पहले साल में भवनात्मक एवं व्यबहारिक सदमे के लक्षण दिखाई दे सकते है। ऐसे बच्चों को अक्सर नींद में बुरे सपने आते है वे छोटी बातों पर चौंक जाते हैं , शोर शराबे से बेचैन हो जाते है , तेज रौशनी में उन्हें परेशानी होती है , लोगो से मिलने में घबराते हैं और ख़ुशी के पल में भी परेशानी महसूस करते है।
नोट: राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले प्रत्येक मामले को सूचीबद्ध किया जाए तो निश्चय ही हमारे रौंगटे खड़े हो जाएंगे। बहुत शर्म का विषय है कि नैतिकता में विश्वगुरु रहे भारत को 26 जून, 2018 को जारी क़ि गई ‘थॉमसन रॉयटर्स फाऊंडेशन’ की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक देश बताया गया है । पिछले वर्षों से दुष्कर्म मामलों का आंकड़ा
तेजी से बढ़ा है। बीते दशक के दौरान शील भंग के 4,70,456, महिला अपहरण के 3,15,074, बलात्कार के 2,43,051 तथा महिला दुव्र्यवहार के 1,04,151 मामले दर्ज किए गए।अनेको मामलों में तो रिपोर्टे दर्ज ही नहीं हो पाती, औसतन प्रतेक मिंट कोई न कोई महिला यौन हिंसा की शिकार हो जाती है।
महिलाओ का किसी भी स्तर पर हनन अमानवीय कृत्य की श्रेणी में आता है। इस संदर्भ में अनेक कानून बनाए गए हैं। लेकिन कितने भी कानून बने हों, घटनाओं की प्रत्युत्तर स्पष्ट संकेत है कि अब तक किसी भी कानून ने इतनी कड़ाई से क्रियान्वित नहीं हो पाया कि नारी समाज में निर्भीकता से गरिमामय जीवन जी पाए। उन्नाव, कठुआ, तेलंगाना, शिमला, हाथरस आदि अनेक कांड सुरक्षातंत्र की नाकामी दर्शाते हैं।
कहीं ऐसा तो नहीं कि आधुनिक पालन-पोषण के भ्रम में हम बच्चों को वे संस्कार ही नहीं दे रहे, जो उन्हें नारी के प्रत्येक रूप को यथोचित स मान देना सिखा पाएं? बुद्धिमत्ता क्षमता तथा तकनीकी कौशल के संयोजन में कहीं हम अपना वर्तमान शैक्षणिक पाठ्य विवरण देश के भावी भविष्य को नैतिक ज्ञान प्रदान करवाने में पिछड़ तो नहीं रहा?
ताज्जुब है क़ि , तकनीकी विकास का दम भरतीं हमारी व्यवस्थाएं इतनी कुशल और सक्षम नहीं हो पाईं कि यौवन-प्रवाह का रुख सार्थक व जनहित कार्यों की ओर जाने हेतु पर्याप्त चारित्रिक किरियाकलापो का निर्माण कर पाएं? वर्तमान घटनाओं से जाहिर है कि अमृत महोत्सव भी राजनीतिक पराश्रय में फलते-फूलते अपराधीकरण तथा भ्रष्टाचार में संलिप्त प्रशासन का शुद्धि करण नहीं हो रहा । कोर्ट में पड़े मामलो को अपेक्षित गति न मिल पाना निश्चय ही चिंताजनक है लेकिन दुष्कर्मों के विरोध में राष्ट्रव्यापी स्तर पर पसरता मौन अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण है।
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